हिमालय की घाटी में गूंजा ‘जय हिंद’, बच्चों की सलामी से पिघला भारत

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

देशभक्ति हमेशा लाल किले की दीवारों से नहीं निकलती, कभी-कभी वो दूर पहाड़ों में खड़े दो छोटे बच्चों की आवाज़ बनकर आती है। कहां पर?
हिमालय की ऊँचाइयों पर, जहां बादल भी पास होने के पैसे लेते होंगे।

“जय हिंद साब!” — और हवा भी रुक गई

दो नन्हे बच्चे, हाथ उठाकर एक सैनिक को सलामी देते हैं और मासूम आवाज़ में चिल्लाते हैं— “जय हिंद साब!”

लोग कहते हैं देशभक्ति सिखानी पड़ती है…पर भाई, यहां तो nature-born patriotism है — जैसे पहाड़ों में ऑक्सीजन कम हो पर गर्व ज़्यादा।

ये पल सिर्फ एक दृश्य नहीं, भारत का दिल है

अरुणाचल की सीमाओं से लेकर राजस्थान के रेगिस्तान तक, हर भारतीय को जोड़ने वाली ताकत यही मासूम आवाज़ है।

ये राजनीति का नारा नहीं — ये वो pure emotion है जो वोट बैंक नहीं, दिल की बैंक में जमा होता है।

भारत की सबसे बड़ी ताकत? वो दिल—जो अभी भी भारत पर भरोसा करते हैं

ना इंस्टा रील, ना न्यूज चैनल की ब्रेकिंग, बस दो छोटे बच्चे… और एक सैनिक।

और इन तीन शब्दों से निकलती गूंज “जय हिंद” यही दुनिया को बताती है— Bharat is not a country… it’s an emotion efficiently powered by its people.

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